तू मान जा

ऐ दिल, तू मान जा,
समझ ले दुनिया की रीत
और याद कर हररोज़
की ये तो एक नांव है,
कभी शांत, कभी ज़ोर से बहती..

तू इसमें है बैठा,
जैसे बैठे हैं कई हज़ार..
ना उनको पता,
ना तुझे ये पल्ले पड़ता
की दुनिया है घूमती
अपने ही घेरों में,
जैसे है तू सुनता
अपनी ही धड़कने..

ये घेरे हैं थोड़े घने,
बरसो से अटके
इन्हे तू सुलझाने ना जा,
बल्कि समझ ले
वो गूंजती हुई दास्तां,
जो है हर एक के लिए अलग,
पर सीमित नहीं..
मुश्किल है,
पर अधूरी नहीं..
ऐ दिल, तू मान जा
मुझे समझा दे ये दुनिया।

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